Interesting Things to do in landour you can go from mussoorie here

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गर्मियों का मौसम जैसे ही आता है, वैसे ही इंसान भागता है पहाड़ों की तरफ, क्योंकि शहर की तड़पाती गर्मी में चाहिए होता है कुछ ठंडा और वो बस एक हिल स्टेशन ही दे सकता है। लेकिन अब जाएं तो जाएं कहां ये सवाल सबसे बड़ा रहता है। क्योंकि सारे हिल स्टेशन तो हम सभी ने एक्सप्लोर कर लिए हैं, ऐसे में दिमाग घूमता है कौन सी जगह बढ़िया रहेगी अब? तो आज हम आपको बताएंगे वो प्लेस जो आपको देखने में एकदम नई लगेगी और शांति तो आपका मन मोह लेगी।

हम बात कर रहे हैं, दिल्ली से करीबन 277 किमी दूर और मसूरी से सिर्फ 7 किमी दूर लंढौर की, जो घूमने की लिस्ट में एक ऑफबीट जगह में आती है। अगर गर्मियों में कहीं जाने का मन बना रहे हैं, तो चलिए फिर जानते हैं फिर उस जगह के बारे में।

लंढौर के बारे में

लंढौर के बारे में

लंढौर का नाम ब्रिटेन के एक छोटे से वेल्श गांव लैंडडॉरर से लिया गया है। ब्रिटिश शासन के दौरान, अंग्रेज सैनिक अपने घर को काफी याद किया करते थे, तब उन्होंने भारत में कई जगहों के नाम अपने देश के शहरों के नाम पर रख दिए। मसूरी में बनने वाली पहली इमारत 1825 में कैप्टन यंग ने लंढौर में बनाई थी। कैप्टन यंग वही व्यक्ति थे जिन्होंने मसूरी को खोजा था। वह ब्रिटिश सेना में गुरखा बटालियन के कमांडेंट थे।
लंढौर में स्थित क्लॉक टॉवर को शहर की सीमा माना जाता था। इस सीमा के आगे भारतीयों को जाने की अनुमति नहीं थी। केवल ब्रिटिश और आयरिश सैनिक, जो 6 से 48 महीनों के लिए ब्रिटिश रेजिमेंट में तैनात होते थे, वे ही यहां अपनी छुट्टियों के लिए घर बना सकते थे।

दूसरों से अलग है लंढौर

दूसरों से अलग है लंढौर

आपको जानकर हैरानी होगी, मसूरी के इतने करीब होने की वजह से लंढौर काफी अलग है। लंढौर हमेशा से ही छावनी क्षेत्र का हिस्सा रहा है। परिणाम स्वरुप, पिछले 100 सालों से लंढौर में कोई लकड़ी की कटाई या वनों की कटाई नहीं हुई है। अधिनियम के मुताबिक, लंढौर में किसी भी तरह का नया निर्माण ‘गैरकानूनी’ माना जाता है। इन नियमों की वजह से आधुनिकीकरण और पर्यटन लंढौर से एकदम दूर हैं।

24 मकान और 4 दुकान

​ज्यादातर पर्यटक यहां सिर्फ मसूरी या देहरादून से एक दिन के लिए घूमने के लिए आते हैं, क्योंकि यहां ठहरने की बहुत कम जगहें हैं। आजादी के समय लंढौर में कुल 24 मकान थे, और आज भी उतने ही हैं। किसी ने सही ही कहा है – “चौबीस मकान और चार दुकान – इतना ही है लंढौर!” इसी कारण लंढौर की खूबसूरती और हरे-भरे जंगल अब तक सुरक्षित हैं!​

यहां देखने वाली जगह

यहां देखने वाली जगह

केलॉग मेमोरियल चर्च – यह प्रेस्बिटेरियन चर्च 1903 में बनाया गया था और ब्रिटिश निवासियों के लिए एक शिक्षण केंद्र भी था। इस चर्च की वास्तुकला गोथिक शैली में है और इसमें सुंदर रंगीन कांच की खिड़कियां हैं। चर्च के ठीक सामने लंढौर लैंग्वेज स्कूल भी जरूर जाएं।
सिस्टर्स बाजार – यह एक पुरानी बाजार गली है, जहां कैफे, रेस्तरां और छोटी-छोटी दुकानों का मजा लिया जा सकता है। यह एक लोकप्रिय शॉपिंग और खाने-पीने की जगह है।
सेंट पॉल्स चर्च – 1839 में बना यह चर्च ब्रिटिश काल का एक ऐतिहासिक एंग्लिकन चर्च है। पहले यह सैन्य अधिकारियों के लिए पूजा स्थल था और आज भी यह एक सक्रिय चर्च है, जिसे देखने के लिए कई पर्यटक आते हैं।
लाल टिब्बा – यह मसूरी और लंढौर का सबसे ऊँचा स्थान है, जहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है। यहां से पुराने भवन, पहाड़ी श्रृंखलाएं और सर्दियों में दिखने वाली “विंटर लाइन” का सुंदर नजारा देखा जा सकता है।
जबर्खेत नेचर रिजर्व – यह मसूरी की पहाड़ियों में स्थित एक निजी जंगल है, जहां हिमालयी वन्यजीव पाए जाते हैं। यहां पर हाइकिंग, जंगल सफारी और ट्रेकिंग जैसी रोमांचक गतिविधियों का आनंद लिया जा सकता है।

कैसे पहुंचे मसूरी से लंढौर

कैसे पहुंचे मसूरी से लंढौर

लंढौर, मसूरी के मॉल रोड पर पिक्चर पैलेस से सिर्फ 3.5 किलोमीटर दूर है। मसूरी से लंढौर जाने वाली सड़क काफी खड़ी और संकरी है, जिस पर पीक सीजन में अक्सर जाम लग जाता है। हर ड्राइवर के लिए इस सड़क पर गाड़ी चलाना आसान नहीं होता। इसलिए सलाह दी जाती है कि मसूरी मॉल रोड से प्राइवेट टैक्सी लेकर लंढौर जाएं। सीजन के हिसाब से एक छोटी कार आपको मसूरी से लंढौर छोड़ने के लिए लगभग 300-400 रुपए ले सकती है।



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