छप्पर पर और आंगन में बिछी थीं 24 लाशें…यूपी का दिहुली नरसंहार जिसके बाद इंदिरा गांधी को पैदल जाना पड़ा था, फैसले में 44 साल क्यों लगे? – bodies were lying on the roof and in the courtyard dihuli firozabad killings up after which indira gandhi had to walk explained

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नई दिल्ली: 18 नवंबर, 1981 को शाम 5 बजे के आसपास का समय रहा होगा। यह सर्दियों की शुरुआत थी, जब अंधेरा जल्दी उतर आया था। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले से करीब 30 किलोमीटर दूर जसराना कस्बे के गांव दिहुली में कुछ डकैत हथियारों के साथ पहुंच गए। ज्यादातर डकैत उस वक्त के संतोष-राधे गैंग के थे और पुलिस की वर्दी में थे और गांव पहुंचते ही अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी। जो जहां दिखा, उसे वहीं मार डाला। यह नरसंहार करीब 4 घंटे तक चला, जिसमें 24 दलितों की हत्या कर दी गई थी। जब पुलिस मौके पर पहुंची तो डकैत भाग चुके थे। जानते हैं उस काली शाम की वो खौफनाक कहानी, जिससे यूपी से लेकर दिल्ली की सियासत हिल गई थी।

यूपी में वीपी सिंह की सरकार हिल गई थी

दिहुली नरसंहार के वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह थे। इस घटना से वह भी हिल गए थे। उस वक्त वीपी सिंह के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई थी और विपक्ष ने यूपी में सुरक्षा पर सवालिया निशान खड़े कर दिए थे।

कुएं की ओट में छिपकर बचाई अपनी जान

गवाह लायक सिंह मुकदमे के वादी भी थे। उन्होंने कोर्ट को बताया था कि वह 18 नवंबर 1981 को शाम 5 बजे के करीब गांव में अपने भाई के खेत पर गए हुए थे। वहां से लौटते समय देखा कि 20-21 आदमी राइफल, बंदूक और तमंचा लिए गांव की तरफ आ रहे थे। वह गांव के कुएं के पास गड्ढे में छिप गए। वहां से देखा कि राधे, संतोष, कप्तान, कमरूददीन, रामसेवक, श्यामवीर, कुंवरपाल के पास हथियार थे। डकैतों ने सबसे पहले आलू के खेत में खड़े ज्वाला प्रसाद की गोली मारकर हत्या की। वह सियाराम के खेत में जा गिरे। इसके बाद आरोपी आगे बढ़े और उनके गांव में घुसे। और अंधाधुंध गोलियां चलाने लगे।

Dihuli massacre

मौत का तांडव मचाने के बाद डकैतों ने की थी दावत

एक गवाह वेदराम ने अदालत को बताया था कि वारदात में उनके दो बेटे भी मारे गए। नरसंहार के बाद आरोपी ठाकुरों के मोहल्ले में चले गए। वहां पंचम सिंह, रवेंद्र सिंह, युधिष्ठिर सिंह, रामपाल सिंह के घर पर रात को डेढ़ बजे तक रुके। वहां गिरोह ने दावत भी की थी। भयाहवता बताते हुए कहा कि रात तक वह डर के कारण अपने मोहल्ले में नहीं गए थे। गिरोह ने हत्याओं के बाद लूटपाट भी की थी। 200 ग्राम की करधनी, 12 चांदी के लच्छे, जेवर और कपड़े लूट ले गए थे।

डकैतों ने औरतों-बच्चों किसी को नहीं बख्शा

हमले में बचीं 80 साल की एक पीड़ित चमेली देवी उस दिन को याद करते हुए बताती हैं कि अचानक गोलियां चलने लगी। मैंने भागते हुए देखा कि रास्ते में कई लोग गोली लगने से जमीन पर गिरे हुए थे। मैं छत पर भागी लेकिन पैर में गोली लग गई तो मैं और मेरा बच्चा छत से गिरकर घायल हो गए थे। डकैतों ने औरतों-बच्चों किसी को नहीं बख्शा। जो मिला उसको मार दिया था। वहीं एक और चश्मदीद भूप सिंह के मुताबिक गिरोह ने पूरे जाटव टोले को घेर रखा था, जो दिखाई देता उसको गोली मार देते थे। मृतकों के शव दूसरे दिन ट्रैक्टर पर लाद कर मैनपुरी भेजे गए थे। वहां चार डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम किया था।

Indira Gandhi Dihuli Visit

इंदिरा गांधी पैदल ही गांव में पीड़ितों से मिलीं

इस वारदात के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी दिहुली गांव का दौरा किया था। वह गांव में पैदल ही घूमीं। विपक्ष ने इस नरसंहार को लेकर तब इंदिरा सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। विपक्ष के नेता बाबू जगजीवनराम ने भी इस गांव का दौरा किया था।

महीनों गांव में पड़ी रही पीएसी, ऐसे लगे 44 साल

घटना के बाद कई महीनों तक पुलिस और पीएसी गांव में तैनात रही थी और लोगों से गांव में ही रुकने की अपील की थी। इस केस को हाईकोर्ट के आदेश पर इलाहाबाद के सेशन कोर्ट में 1984 में ट्रांसफर किया गया था। 1984 से लेकर अक्टूबर 2024 तक केस में वहां पर ट्रायल चला। इसके बाद केस को फिर से मैनपुरी डकैती कोर्ट में ट्रांसफ़र किया गया था। इस पूरी प्रक्रिया में 44 साल लग गए। जिसमें अब 18 मार्च को फैसला आना है।

अगड़ी और निचली जाति में दुश्मनी की शुरुआत ऐसे हुई

पुलिस की चार्जशीट के अनुसार सामूहिक नरसंहार को अंजाम देने वाले अधिकांश अभियुक्त अगड़ी जाति से थे। पुलिस के मुताबिक़ पहले संतोष, राधे के साथ कुंवरपाल भी एक ही गिरोह में थे। कुंवरपाल दलित समुदाय से आता था। उसकी एक अगड़ी जाति की महिला से मित्रता थी और ये बात अगड़ी जाति के ही संतोष और राधे को नागवार गुज़री। यहीं से दुश्मनी की शुरुआत हुई। इसके बाद कुंवरपाल की संदिग्ध परिस्थितियों में हत्या हो गई। इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए संतोष-राधे गैंग के दो सदस्यों को गिरफ़्तार करके उनसे भारी मात्रा में हथियार बरामद किए।

क्यों किया गया था नरसंहार, यहां जानिए

दरअसल, संतोष, राधे और बाकी अभियुक्तों को यह शक था कि उनके गैंग के इन दो सदस्यों की गिरफ़्तारी के पीछे इलाके के जाटव जाति के लोगों का हाथ है। वास्तव में पुलिस ने इस घटना में जाटव जाति के तीन लोगों को गवाह के तौर पर पेश किया था। यहीं से यह शक और गहरा गया। पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक इसी रंजिश की वजह से दिहुली हत्याकांड हुआ।

दिहुली नरसंहार में कितने आरोपी थे

इस घटना में कुल 17 अभियुक्त थे, जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है। 11 मार्च को फैसले से पहले एडीजे (विशेष डकैती प्रकोष्ठ) इंद्रा सिंह की अदालत में जमानत पर रिहा चल रहे अभियुक्त कप्तान सिंह हाज़िर हुए थे। अदालत ने कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल नाम के तीन अभियुक्तों को दोषी क़रार दिया और अब 18 मार्च को इन्हें सजा सुनाई जाएगी। एक अन्य अभियुक्त ज्ञानचंद्र को भगोड़ा घोषित किया गया है। रामसेवक, मैनपुरी जेल में बंद हैं, उन्हें अदालत में पेश किया गया था, जबकि तीसरे अभियुक्त रामपाल की ओर से हाजिरी के लिए माफी मांगी गई थी। हालांकि, यह अपील खारिज हो चुकी है।



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