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होलिका दहन 13 मार्च को होगा। रंगों की होली 14 मार्च, शुक्रवार को मनाई जाएगी। 16 मार्च, रविवार को भाई दूज और 19 मार्च, बुधवार को रंग पंचमी का पर्व होगा। इस बार होलिका दहन स्थिर लग्न और लाभ की चौघड़िया में होगा।
वृश्चिक लग्न रात्रि 10:53 से 1:09 तक रहेगी। लाभ का चौघड़िया रात्रि 12 बजे से रहेगा। होलिका पूजन शाम 6 से 9 बजे के बीच किया जा सकता है। धर्माधिकारी पंडित विनोद शास्त्री के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। इस बार भद्रा की छाया रहेगी। धर्मशास्त्रों के अनुसार, भद्रा में होलिका दहन वर्जित है। 13 मार्च को भद्रा प्रातः 10:37 से रात्रि 11:28 तक रहेगी। इसलिए शुभ मुहूर्त भद्रा समाप्त होने के बाद रात्रि 11:28 से 12:30 तक रहेगा। शास्त्रों के अनुसार, भद्रा में होलिका दहन करने से राजा और प्रजा दोनों के लिए अशुभ होता है। धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु ग्रंथों के अनुसार पूर्णिमा तिथि प्रदोष काल में होनी चाहिए। इस वर्ष फाल्गुन शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 13 मार्च को प्रातः 10:37 तक रहेगी। इसके बाद पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होकर 14 मार्च को दोपहर 12:25 तक रहेगी। पूर्णिमा तिथि शुरू होते ही भद्रा भी प्रारंभ हो जाएगी, जो रात्रि 11:28 तक रहेगी।
खेत से नया अन्न लाकर यज्ञ में हवन कर प्रसाद ग्रहण करने की परंपरा पंडित विनोद शास्त्री ने बताया कि जाति और वर्ण भेद से परे यह देशव्यापी पर्व है। लकड़ियों और उपलों का ढेर लगाकर होलिका पूजन किया जाता है। फिर अग्नि प्रज्वलित की जाती है। इसे नवान्नेष्टि यज्ञ भी कहा जाता है। खेत से नया अन्न लाकर यज्ञ में हवन कर प्रसाद ग्रहण करने की परंपरा है। इसी अन्न को होला कहते हैं, जिससे इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। मान्यता है कि यह पर्व काम दहन से जुड़ा है। भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था। यह त्योहार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका की स्मृति में भी मनाया जाता है। कहा जाता है कि होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान था। हिरण्यकश्यप ने उसे भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि स्नान करने को कहा, लेकिन होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गए, तभी से यह परंपरा चली आ रही है।