हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एकादशी 10 मार्च, यानी सोमवार को है। इस दिन श्रद्धालु भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना करेंगे और व्रत रखकर उनकी कृपा प्राप्त करने की प्रार्थना करेंगे। रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि इसे भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, रंगभरी एकादशी का संबंध होली महोत्सव से भी है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ होली खेली थी। इसलिए इसे होली से पहले भक्तिभाव से मनाया जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त सच्चे मन से इस दिन उपवास और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं, उन्हें सुख-समृद्धि और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। रंगभरी एकादशी होलाष्टक के दौरान आती है, इसलिए यह भक्तों के लिए सत्संग, भक्ति और साधना का उत्तम अवसर होता है। इस दिन कई श्रद्धालु भगवान शिव और माता पार्वती की भी आराधना करते हैं, क्योंकि यह पर्व शिव-पार्वती के विवाह और होली उत्सव की शुरुआत से भी जुड़ा है। रंगभरी एकादशी केवल उपवास का पर्व नहीं है, बल्कि यह भक्ति, प्रेम और सद्भावना का प्रतीक भी है।
पूजा विधि और अनुष्ठान
1. व्रत और संकल्प – भक्त सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लेंगे और पूरे दिन फलाहार रहेंगे।
2. भगवान विष्णु की पूजा – भगवान विष्णु को पीले पुष्प, तुलसी दल, पंचामृत और चंदन अर्पित किए जाएंगे।
3. आंवला वृक्ष की पूजा – आंवला पेड़ के नीचे दीप जलाकर भजन-कीर्तन किया जाएगा।
4. विष्णु सहस्रनाम का पाठ – इस दिन विष्णु सहस्रनाम या एकादशी व्रत कथा का पाठ करना शुभ माना जाता है।
5. दान-पुण्य – व्रतधारी इस दिन जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और आंवला का दान करेंगे।
आमलकी एकादशी व्रत पारण मुहूर्त- आमलकी एकादशी व्रत पारण का शुभ मुहूर्त 11 मार्च 2025 को सुबह 06 बजकर 35 मिनट से सुबह 08 बजकर 13 मिनट तक रहेगा। पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय सुबह 08 बजकर 13 मिनट है।